को
News
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
सारांश
लद्दाख में राज्यता और छठी अनुसूची की मांग को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन 24 सितंबर 2025 को हिंसक हो गया। चार लोग मारे गए, 80 से अधिक घायल। लेह में कर्फ्यू लगाया गया, बीजेपी कार्यालय जला। सोनम वांगचुक जैसे कार्यकर्ताओं की अगुवाई में जारी आंदोलन ने केंद्र को चुनौती दी है। स्थानीय स्वायत्तता की लड़ाई अब राष्ट्रीय मुद्दा बन गई।
मित्रों, कल्पना कीजिए एक ऐसी जगह जहां बर्फीली चोटियां आसमान छूती हैं, लेकिन नीचे की जमीन पर असंतोष की आग सुलग रही है। लद्दाख, भारत का वह रत्न जो चीन और पाकिस्तान की सीमा पर खड़ा है, आज फिर सुर्खियों में है। 24 सितंबर 2025 को राज्यता की मांग करने वाले प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसमें चार लोग मारे गए और 80 से अधिक घायल हो गए। लेह शहर में कर्फ्यू लग गया है। यह सिर्फ खबर नहीं, बल्कि एक सबक है – लोकतंत्र में वादों का क्या होता है जब वे टूटते हैं?
मैं, एक समाचार विश्लेषक के रूप में, आपको यह ब्लॉग लिखते हुए महसूस कर रहा हूं कि यह कहानी सिर्फ तथ्यों की नहीं, बल्कि भावनाओं की है। आइए, इस रोमांचक सफर पर चलें, जहां इतिहास, राजनीति और मानवीय संघर्ष एक-दूसरे से टकराते हैं।
2019 को याद कीजिए। अनुच्छेद 370 हटाने के साथ जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया गया – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख यूनियन टेरिटरी। लद्दाखवासियों ने पहले इसे स्वागत किया, सोचा कि दिल्ली से सीधा जुड़ाव विकास लाएगा। लेकिन जल्द ही हकीकत सामने आ गई।
यह बदलाव लद्दाख को केंद्र शासित बना दिया, लेकिन वादे अधूरे। केंद्र ने कहा था – अधिक शक्ति देंगे, लेकिन चार साल बाद भी कुछ नहीं। यह राजनीतिक वादाखिलाफी आज की हिंसा का बीज है।
24 सितंबर को लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) ने शटडाउन बुलाया। सोनम वांगचुक, वह पर्यावरण कार्यकर्ता जिन्हें '3 इडियट्स' फिल्म से प्रेरित जानते हैं, 35 दिनों से भूख हड़ताल पर थे। मांगें साफ थीं:
शांत मार्च शुरू हुआ, लेकिन भीड़ बढ़ी। बीजेपी कार्यालय पर हमला, आग लगाई गई। पुलिस ने गोली चलाई – चार मौतें, दर्जनों घायल। कर्फ्यू लग गया, इंटरनेट सीमित, 50 गिरफ्तार। लेफ्टिनेंट गवर्नर कविंदर गुप्ता ने इसे "षड्यंत्र" कहा, जांच के आदेश दिए।
यह रोमांचक मोड़ है – एक शांतिपूर्ण आंदोलन रातोंरात रक्तरंजित क्यों? क्योंकि लोग थक चुके हैं। वांगचुक ने कहा, "यह लद्दाख का सबसे दुखद दिन है।"
दोस्तों, यह सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संरक्षण की लड़ाई है। लद्दाख की 3 लाख आबादी में 80% आदिवासी। बिना कोटे के, बाहरी कंपनियां जमीन हथिया रही हैं।
ये मांगें आपको सिखाती हैं – लोकतंत्र में आवाज उठाना जरूरी, लेकिन शांति से। अगर आप पहाड़ी क्षेत्रों से हैं, तो सोचिए: आपकी जमीन सुरक्षित कैसे रहे?
हिंसा के बाद लेह शांत लेकिन तनावपूर्ण। ओमर अब्दुल्ला ने कहा, "यह केंद्र के वादे तोड़ने का नतीजा।" अखिलेश यादव ने बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया। केंद्र ने वांगचुक पर "उकसावा" का आरोप लगाया, लेकिन बातचीत का वादा किया।
यह घटना हमें बताती है – असंतोष को अनदेखा न करें, वरना आग लग जाती है।
मित्रों, लद्दाख की यह कहानी एक आईना है। शांति से संघर्ष ही जीत दिलाता है। केंद्र को अब कार्रवाई करनी चाहिए – राज्यता पर विचार, छठी अनुसूची लागू। आप क्या सोचते हैं? कमेंट में बताएं। यह ब्लॉग आपको सिखाता है: इतिहास समझें, तो भविष्य बदल सकते हैं।
संबंधित कीवर्ड: लद्दाख राज्यता आंदोलन, लेह हिंसा 2025, सोनम वांगचुक हड़ताल, छठी अनुसूची लद्दाख, भारत हिमालय विवाद।
स्रोत लिंक (विकिपीडिया-स्टाइल रेफरेंस के लिए):
हैशटैग: #LadakhProtests #StatehoodForLadakh #LehCurfew #SonamWangchuk #HimalayanStruggle #IndiaNews2025